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आज हम मित्रों आपको यह बताने जा रहे हैं कि आखिर कुंडली क्या हैं? सरल शब्दों में बात करें तो जन्मकुंडली से अभिप्राय: एक निश्चित समय में आकाशमंडल में ग्रहों का खिंचा गया एक फोटॊ है इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि वास्तव में जन्म कुंडली किसी बालक या अन्य किसी सजीव वस्तु के जन्म के समय का नक्शा है। जिस समय में किसी बालक या सजीव वस्तु ने जन्म लिया था। जिस समय यह घटना घटी यदि उस समय की ग्रह स्थिति हम एक स्थान पर लिख लें और उसके अनुसार सभी ग्रहों को बिठा लें तो इस प्रकार जो नक्शा बनकर तैयार होता है वह जन्म कुंडली होगी।किसी भी व्यक्ति या सजीव व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी दिशा में जो राशि उदयमान होती है, उसे ही लग्न राशि की कहा जाता है। लग्न भाव को प्रथम भाव के नाम से भी जाना जाता है। किसी भी जन्मपत्री में कुल १२ भाव होते हैं। प्रत्येक भाव ३० अंश का होता है इस प्रकार भावों का विस्तार ३६० अंश तक होता है। जन्मपत्री के इन्हीं बारह भावों में १२ राशियां और ९ ग्रह स्थित होते है। लग्न और भावों को जानने के बाद आईये अब बात करें भचक्र की। १२ राशियां और ९ ग्रहों के ३६० अंश के विस्तार निरुपण को भचक्र का नाम दिया जाता है। सभी बारह भावों में प्रथम भाव जिसे हम लग्न भी कहते हैं वह सबसे महत्वपूर्ण भाव है।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में जन्मपत्री के विभिन्न रुपों में बनाया जाता है। मुख्य रुप से उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय और बंगला प्रारुप की विधियां प्रयोग में लाई जाती है। कुंडली बनाने की उत्तर भारतीय शैली में जन्मपत्री निम्न प्रकार से बनाई जाती है। इसके प्रथम भाव को लग्न भाव अथवा पहले भाव में उदित राशि के नाम से जाना जाता है। जन्म समय में उदित होने वाली राशि की संख्या इसी भाव में लिखी जाती है। इसके पश्चात इसके बाद क्रम से आने वाली राशि का नाम लिखा जाता है। उदाहरण के लिए- यदि किसी जन्मपत्री के पहले भाव में कर्क राशि है तो उसके अगले भाव में सिंह राशि होगी। इसी प्रकार यह राशि संख्या क्रम आगे बढ़ता है। भावों की गिनती घड़ी की विपरीत दिशा में आगे बढ़ती है।
दक्षिणी भारतीय शैली की बात करें तो इसका प्रारुप निम्न प्रकार से होता है। चित्र संख्या २। कुंडली के इस प्रारुप में भावों में राशियों की स्थिति स्थिर रुप में रखी जाती है। बायें ओर से राशियां वर्ग में लिखी जाती है और घड़ी के क्रम की दिशा में आगे लिखा जाता है। जैसे- मेष, वृषभ, मिथुन राशियां लिखी जाती है। जो भी लग्न स्पष्ट की राशि होती है वह इसी वर्ग में लिखी जाती है और साथ ही लग्न का निशान यहां लगा दिया जाता है। अन्य सभी ग्रहों को उनकी स्थिति के अनुसार राशियों में ग्रहों को बैठा दिया जाता है।
अब बात करते हैं पूर्वी भारतीय शैली की -
इस प्रकार की जन्मपत्री का प्रारुप सामान्यत: बंगाल और उसके आसपास के राज्यों में किया जाता है। इस रूप में ऊपरी कोष्ठ में मेष राशि लिखी जाती है और तदुपरान्त घड़ी की विपरीत चाल के अनुसार क्रमशः कोष्ठों में वृष, मिथुन आदि राशियाँ लिख दी जाती हैं।
जन्मसमय जो लग्न स्पष्ट राशि होती है, उसे उस राशि वर्ग में शब्दों में लिखा जाता है और उस पर लग्न का निशान भी लगा दिया जाता है। इसके पश्चात् जन्म समय ग्रह स्पष्ट सारणी से ग्रहों की जो स्थिति होती है उसके अनुसार सम्बन्धित राशि में बैठा दिया जाता है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड को १२ भागों में बांटा गया है ठीक उसी प्रकार काल पुरुष को भी १२ भावों में विभाजित किया गया है। कुंडली के इस प्रारुप में भाव स्थिर होते हैं और प्रथम भाव को लग्न भाव का नाम दिया जाता है।इस प्रारुप में जन्म के समय पूर्वी दिशा में उदयमान राशि की संख्या को लग्न भाव या प्रथम भाव कहा जाता है। इसके बाद आने वाली राशियों को दूसरे और तीसरे भाव में लिखा जाता है। इस प्रारुप में भाव पूर्व दिशा से उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर चलते हैं, सरल शब्दों में इसे हम घड़ी की विपरीत दिशा भी कह सकते है। बंगाल में व्यवहार में लाई जाने वाली कुंडली में ग्रहों के साथ नक्षत्रों की संख्या भी लिखी जाती है।
इस प्रारुप में से जब नक्षत्र संख्या को हटा दिया जाता है तो वह बिहार राज्य में प्रयोग होने वाली कुंडलियों का प्रारुप हो जाता है। उड़ीसा राज्य में काफी हद तक यही प्रारुप में प्रयोग में लाया जाता है। इसमें अंतर केवल इतना है कि उड़ीसा में प्रयोग होने वाली कुंड़लियों के प्रारुप में सभी ग्रहों के नक्षत्र ना लिखकर केवल चंद्रमा का नक्षत्र ही लिखा जाता है।
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